ग़लत ग्रुप का खून चढ़ाने से हुई मौत पर सियासत करने वाले जनप्रतिनिधि उसकी तीये की बैठक में भी नहीं पहुँचे
परिजनों पर टूटा मुसीबतों का पहाड़,उधार लेकर करा रहे अंतिम क्रियाकर्म
जयपुर के SMS अस्पताल में गलत ग्रुप का खून चढ़ाने से हुई युवा सचिन की मौत के बाद परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। अंतिम संस्कार से लेकर तीये की बैठक का खर्च भी परिवार को उधार लेकर करना पड़ा। यहां तक कि राशन के पैसे भी नहीं बचे हैं।
24 फरवरी को सचिन का शव मॉर्च्यूरी पहुंचने के बाद परिजनों ने इंसाफ और मुआवजे की मांग करते हुए शव लेने से इनकार कर दिया था। मौके पर परिजनों की समझाइश के लिए पहुंचे हवामहल विधायक बालमुकुंद आचार्य, सिविल लाइंस विधायक गोपाल शर्मा, विप्र सेना और अन्य सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने इन्साफ़ दिलाने का वादा कर परिवार को शव ले जाने के लिए मनाया था। दोनों ही विधायकों ने परिजनों को आश्वासन दिया था कि हम सीएम से मिलेंगे और मुआवजा देने के साथ-साथ सरकारी नौकरी देने पर बात करेंगे।
विधायकों ने यह भी कहा था कि परिवार की तीये की बैठक में भी शामिल होंगे। लेकिन सोमवार को हुई तीये की बैठक में न तो ये माननीय पहुंचे न ही इनका कोई प्रतिनिधी वहां नजर आया। परिवार को ढांढस बंधाने आस-पास के 10-12 गांव-ढाणियों से लोग रायपुरा पहुंचे, लेकिन जिम्मेदारों के मुश्किल घड़ी में न पहुंचने से परिवार में रोष है।
वहीं नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, दौसा सांसद जसकौर मीणा और बांदीकुई से विधायक भागचंद टाकड़ा पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे।
दौसा सांसद जसकौर मीणा ने कहा कि हम पीड़ित परिवार का नाम बीपीएल योजना में जुड़वाने का प्रयास करेंगे। वहीं बांदीकुई से विधायक भागचंद टाकड़ा ने बताया कि उन्हें अभी सीएम ऑफिस से समय नहीं मिला है। जैसे ही दो-चार दिनों में मिलने का समय मिलेगा, हम अपनी मांगें उनके सामने रखेंगे।
इस बात से टूटे परिवार को यकीन हो चला है कि उनके घर के चिराग को न्याय मिलना तो दूर मुआवजे के लिए भी भटकना पड़ेगा।
किडनी खराब होने के चलते सचिन(25) के पिता चारपाई से भी उठ नहीं पाते। अपनी जगह 9 हजार की नौकरी करने बेटे को भेजा था। सचिन ने मरने से कुछ घंटे पहले एक वीडियो जारी कर अपने मां-बाप को ढांढ़स बंधाया था कि वो चिंता नहीं करें। लेकिन मौत के बाद वे ये सोचकर चिंता में है कि घर का खर्च कैसे चलेगा। जवान बेटी की डोली वो कैसे विदा करेंगे
अकेला कमाऊ बेटा सचिन ही था, जिसकी तनख्वाह से पूरा घर चलता था। छोटी बहन की पढ़ाई चल रही थी।
पिता महेश 16 फरवरी को एक्सीडेंट के बाद एक बार सचिन से मिलकर आ गए थे। उन्होंने बता दिया था कि सचिन ठीक हो जाएगा। लेकिन आज मां और मुझे इस बात का अफसोस रहेगा कि हम आखिरी बार उससे बात भी नहीं कर सके।
सचिन नाम सुनते ही अधमरे से हो चुके पिता महेश कहते हैं कि उन्हें मरते दम तक यह अफसोस रहेगा कि उन्होंने सचिन को अपनी जगह कोटपूतली नौकरी करने क्यों भेजा? सचिन के पिता महेश ने बताया कि 9 महीने पहले ही फ्लोराइड युक्त पानी के कारण पथरी से उनकी दांयी किडनी डैमेज हो गई थी, जिसका इलाज एसएमएस अस्पताल में ही हुआ था।
ऑपरेशन के बाद भारी काम, ज्यादा देर तक खड़े रहना या सामान्य काम करने में भी थकान महसूस करते थे। खेती-किसानी में परिवार का गुजर नहीं होता था इसलिए मैंने कोटपूतली जाकर नौकरी शुरू की थी। परिवार का गुजारा चलता रहे इसलिए मैंने अपनी जगह सचिन को 9 हजार रुपए वेतन पर पेट्रोल पंप पर बेटे को चपरासी लगवाया था। लेकिन अपना बेटा खो दिया।
महेश शर्मा ने कहा कि एसएमएस अस्पताल में जो गुनहगार बैठे हैं, महज उनके निलंबन से इंसाफ नहीं मिलेगा। मैं उम्मीद करता हूं मेरे बच्चों के गुनहगारों को सख्त सजा मिलेगी।
5000 रुपए उधार लेकर चने बोए थे, लेकिन बारिश के अभाव में फसल खराब हो गई। हालत यह है कि तीये की बैठक और अन्य खर्च के लिए भी गांव वालों और रिश्तेदारों ने आर्थिक मदद की है। घर में नमक की थैली लाने के लिए भी पैसे नहीं हैं।
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