राजस्थान विधानसभा चुनाव में नहीं थी मोदी लहर

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राजस्थान विधानसभा चुनाव में नहीं थी मोदी लहर

राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल को शपथ लिए लगभग 15 दिन हो चुके हैं साथ ही मतगणना हुए भी लगभग 25 दिन से ऊपर हो चुके हैं लेकिन अभी तक मंत्रिमंडल का गठन नहीं हो पाया है हो सकता है आज कल में मंत्रिमंडल का गठन हो जाए लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि मंत्रिमंडल के गठन में आख़िर इतना समय क्यों लग रहा है

 

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राजस्थान विधानसभा चुनावों में नहीं थी मोदी लहर

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राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 के हुए सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं एक निजी सर्वे एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार इन चुनावों में राजस्थान में मोदी लहर नहीं थी कि यदि लहर थी तो मोदी लहर थी तो राजेंद्र राठौर ,सतीश पूनिया जैसे दिग्गज धराशाही नहीं होते वहीं शिव  विधानसभा क्षेत्र के से निर्दलीय रवींद्र भाटी नहीं जीतते!

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ऐसे कई उदाहरण हैं जैसे जयपुर किशनपोल विधानसभा क्षेत्र में अमीन काग़ज़ी और आदर्श नगर विधानसभा क्षेत्रों में रफीक़ ख़ान विजयी हुए,जबकि वहाँ पर भी उम्मीदवारों ने मोदी के नाम के नाम से वोट माँगे थे और मोदी ने एक विशाल रैली का आयोजन भी इन विधानसभा क्षेत्रों में किया था!

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में भारतीय जनता पार्टी भले ही मोदी मोदी के गुणगान करती नज़र आ रही है लेकिन सर्वे से पता चला है कि राजस्थान में विधानसभा चुनावों में मोदी लहर नहीं कि इसी के मद्देनज़र मंत्रिमंडल विस्तार में देरी हो रही है शीर्ष स्तर पर मंथन चल रहा है कि यदि मोदी लहर नहीं थी तो आम चुनाव 2024 में भाजपा का अगला स्टैंड क्या होगा?

कांग्रेस में अशोक गहलोत के वर्चस्व की लड़ाई मैं हारी कांग्रेस

 

 

वहीं यदि कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण सर्वे में जो निकलकर आ रहा है और कांग्रेस आलाकमान भी महसूस कर रहा है उसके अनुसार कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की वर्चस्व की लड़ाई थी यदि वे पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट से सामंजस्य बैठाकर तथा नए उम्मीदवारों को मौक़ा देते तो कांग्रेस की सरकार रिपीट हो सकती थी!

यदि जयपुर विधानसभा की सीटों की ही बात की जाए तो जयपुर में कांग्रेस की जीत का और भाजपा की हार का कारण मोदी नहीं होकर उम्मीदवार स्वयं थे जैसे किशनपोल में यदि  चंद्रमोहन बँटवाडा  के स्थान पर भाजपा में शामिल हुए पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल को टिकट दिया जाता तो शायद वह सीट निकाल सकती थी ,वही आदर्श नगर की बात की जाए तो अशोक परनामी को यदि टिकट दिया जाता तो वे सीट निकालने में सक्षम थे वही सिविल लाइन विधानसभा सीट के हार का मुख्य कारण कांग्रेस उम्मीदवार प्रताप सिंह स्वयं थे उनकी बड़बोलेपन है कि आदत तथा अहंकार भाजपा उम्मीदवार को 28 हज़ार वोटों से जीत दिलाने में क़ामयाब रहा !हवामहल विधानसभा क्षेत्र की यदि बात की जाए तो कांग्रेस उम्मीदवार आर आर तिवाड़ी भाजपा उम्मीदवार से कहीं अधिक भारी उम्मीदवार थे लेकिन वहाँ महेश जोशी तथा दूसरे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने उनकी क़ब्र खोदने का काम किया परिणामस्वरूप भाजपा की झोली में यह सीट चली गई और विद्याधर नगर विधानसभा सीट से दिया कुमारी  के चेहरे पर पड़े  जिससे वे 73000 वोटों से जीतने में क़ामयाब रही मालवीय नगर विधानसभा क्षेत्र की यदि बात की जाए तो कांग्रेस उम्मीदवार अर्चना शर्मा की छवि एक बार फिर भाजपा उम्मीदवार के आगे हल्की रही परिणामस्वरूप वह सीट कालीचरण सर्राफ़ यानी भाजपा के खाते में चली गई यदि यहाँ पर कांग्रेस उम्मीदवार उम्मीदवार बदला जाता तो शायद कांग्रेस यह सीट निकाल सकती थी 

दबी ज़ुबान में भाजपा स्वीकारने लगी अंदरूनी कलह ,मंत्रिमंडल का गठन अब तक नहीं होना भी पैदा करता है संशय

भाजपा शीर्ष नेतृत्व चाहता है कि राजस्थान सहित सभी भाजपा शासित राज्यों में प्रशासनिक अधिकारी भारतीय प्रशासनिक अधिकारी केंद्र के द्वारा नियुक्त किए जाएं जिससे सभी राज्यों को कंट्रोल किया जा सके

अब सवाल यह उठता है कि अखिर बिना रुकावट पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद भी इतने दिन उपरांत मंत्री क्यों नहीं बन पा रहे हैं? आखिर क्या वजह है कि 115 विधायकों वाली सरकार को मंत्री बनाने में इतना समय लग रहा है। दरअसल, भाजपा के नेताओं का मानना है कि राज्य में 20 साल बाद लीडरशिप बदली है, इसलिए पूरा सरकारी तंत्र बदलना होगा। जो नेता अब तक मंत्री बनते आए हैं, उनको लग रहा है कि अब उनकी सीनियरटी के आधार पर उनको फिर से मंत्री बनाया जाएगा, किंतु भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की मंशा कुछ और ही नजर आ रही है।

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