नारीशक्ति वंदन अधिनियम: युग परिवर्तन की और सशक्त कदम— डॉ. अपूर्वा सिंह, प्रदेश उपाध्यक्ष, भाजपा महिला मोर्चा 

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नारीशक्ति वंदन अधिनियम: युग परिवर्तन की और सशक्त कदम— डॉ. अपूर्वा सिंह, प्रदेश उपाध्यक्ष, भाजपा महिला मोर्चा 

महिला आरक्षण बिल, नये युग की शुरूआत

विधायिका ने उच्च और निम्न सदन में एकमत होकर देश की स्त्रियों के समुचित प्रतिनिधित्व के विधान के लिए एक तिहाई आरक्षण का प्रावधान कर दिया है। हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा के अलावा अलग अलग प्रदेशों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने के लिए 126वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में नारीशक्ति वंदन अधिनियम का प्रारूप पारित किया गया है। इस विधेयक की खास बात यह रही कि इस पर सभी दलों की आम सहमति रही है। लोकसभा में विद्यमान 456 सांसदों में से दो के अतिरिक्त सभी दलों और सांसदों ने इस अधिनियम के पक्ष में मतदान किया। वहीं उच्च सदन में भी सभी 215 सांसदों ने इसके पक्ष में मतदान किया। राज्य विधानसभाओं की सहमति के साथ ही नारी शक्ति वंदन अधिनियम की की क्रियान्विति का समय आ पाएगा। जल्द ही होने वाली जनगणना और परमीसन के उपरांत यह महिला आरक्षण प्रावधान विधानसभा व लोकसभा चुनावों में लागू हो सकेगा। कुल 543 सदस्यों की लोकसभा में अब न्यूनतम 181 पद महिलाओं के लिए होंगे। इस निर्णय से देश की नारीशक्ति का एक प्रतीक भी प्रतिध्वनित होता है। 181 अब तक परिवाद का सार्वजनीक कॉल नंबर था, अब यह 181 सार्वजनीन स्त्री प्रतिनिधित्व का भी प्रतीक बनेगा। "नारी तुम केवल श्रद्धा हो" का साहित्यिक उद्घोष अब स्त्री तुम आदिशक्ति हो, की सांस्कृतिक सूक्ति के साथ सार्थक रूप में समस्वरित होगा। अब वह भावनाओं की अधिष्ठान होने के साथ ही संभावनाओं की सहसर्जिका होगी।

देश अपने अमृत काल की ओर अग्रसर है। इसे इतिहास का अमिट काल बनना है। अगले चार वर्षों में देश 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन चुका होगा। यानि 2028 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनकर सामने आएगा। देश की इस गतिशक्ति के साथ कदमताल मिलाने के लिए अलग-अलग राज्यों में एक ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनने की सकारात्मक होड़ व दौड़ भी दिखने लगी है।
देश की आशा व संभावना को नये पंख लगे है। मेक इन इंडिया का प्रभाव अब देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तत्पर है। आधारभूत संरचना में हम विश्व के शिखर देशों में शुमार होने की स्थिति में है। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के साथ रेलवे भी एक क्वांटम लीप पाने की स्थिति में आ चुका है। पेट्रोल और डीजल से निर्भरता घटाने के लिए इथेनॉल, हाइड्रोजन व बैटरी चालित इलेक्ट्रिक व्हीकल हमारी गति को नया रूप देने के लिए तैयार है। 2030 तक भारत की ऊर्जा का लगभग आधा पुनर्नवीकरण ऊर्जा स्रोत से प्राप्त होने की ओर अग्रसर हो चुका होगा। रक्षा, कंप्यूटर व प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी में किए गए सुधार देश को आयातक से निर्यातक बनाने के लिए तत्पर हो चुके हैं। अंतरिक्ष में हम मंगल, चंद्र को पार कर अब सूर्य की और बढ़ने लगे हैं। भारतीय प्रतिभाएं वैश्विक मानचित्र पर अपने हस्ताक्षर अंकित कर चुकी हैं। विकसित देशों में भारतीय राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी अपना अभूतपूर्व शिखर पाने लगा है।
समृद्धि और सशक्तीकरण के इन दो परिच्छेदों को छोड़कर अब हम पुनः स्त्री सशक्तीकरण की ओर लौटते हैं। यह देश अब स्वतंत्रता के बाद 8 दशक पूर्ण करने को है। स्त्री हमारे संसार का आधा भाग है। परंतु उसका राजनीतिक प्रतिनिधित्व अभी भी संसद में 15% से कम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिनिधित्व में भारतीय जनता पार्टी ने अब तक का शिखर महिला प्रतिनिधित्व स्थापित करने का इतिहास रचा था परंतु स्त्री शक्ति की जो संभावना है, वह अब भी बहुत कुछ दूर लगती थी। तो क्या देश एक स्वाभाविक जागृति और प्रगति के भरोसे स्थिर बैठा रहता। आधी दुनिया क्या अपना पूरा संसार पाने से वंचित रहती?
इससे पहले भी महिला आरक्षण विधेयक लाने के यत्न हुए थे, परंतु वे सशक्त संकल्प और स्वस्थ दृष्टि के अभाव में कभी, विधि के रूप में परिणत व विधान के रूप में क्रियान्वित नहीं हो पाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब नए संसद भवन की आधारशिला रखी, तब उन्होंने इसके विधायन का श्रीगणेश नारी शक्ति वंदन अधिनियम के लिए विधेयक पेश कर किया। यह राजनीति का स्वस्थ रूप था कि इस विधेयक को लगभग सर्वसहमति भरा अनुमोदन प्राप्त हुआ।
केंद्र में जब 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आयी, तभी से उसने स्त्री रूपी आधी दुनिया को सबल करने का यत्न शुरू कर दिया गया था। महिलाओं के आधार से लिंक कर 50 करोड़ जनधन अकाउंट खोले गए। प्रधानमंत्री आवास योजना में महिला को मुखिया बनकर 2 करोड आवास स्वीकृत किए गए। शौचालय की जरूरतों को समझते हुए स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत 1 करोड शौचालय बनाए गए। घर घर पेयजल की आपूर्ति तय करने के लिए 1.50 लाख करोड़ रुपए का जल जीवन मिशन लॉन्च किया गया। सौभाग्य योजना या प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना के अंतर्गत सभी घरों की बिजली प्रदान करने का लक्ष्य पूरा करने की और अग्रसर होते हुए लगभग तीन करोड़ घरों को बिजली से जोड़ा जा चुका है। प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के अंतर्गत 9 करोड़ से अधिक घरों को घरेलू रसोई गैस की सुविधा से जोड़ा गया है। विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना के रूप में प्रधानमंत्री जन आरोग्य आयुष्मान भारत योजना में 50 करोड़ परिवारों को 5 लाख रुपए तक स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया गया। अब आयुष्मान भारत-2 के तहत 40 करोड़ नए मध्य आय वाले लोगों को स्वास्थ्य बीमा देने की तैयारी है।
प्रश्न उठ सकता है, इन योजनाओं व उपलब्धियों का स्त्री सशक्तीकरण से क्या संबंध है। ये योजनाएं आधारभूत मानवीय आवश्यकताओं से जुड़ी हैं। वे एक दृष्टि से मानवाधिकार है। यदि एक परिवार में स्त्री को केंद्र बना कर उसके लिए घर, शौचालय, पेयजल, बिजली, रसोई गैस, बैंक एकाउंट, स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराई जाती है, तो वह स्त्री को घरेलू व व्यक्तिगत स्तर पर सशक्त कर उसे वृहत्तर सामाजिक, आर्थिक सशक्तीकरण के लिए तैयार करती है। वस्तुतः स्त्री सशक्तीकरण के तीन महत्वपूर्ण आयाम है- सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक। केंद्र सरकार ने सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण देकर पृष्ठभूमि तैयार की है, राजनीतिक सशक्तीकरण उसके आगे की भावभूमि तैयार करेगी। एक दृष्टि से अब तक उसे वह धरती देने की कोशिश की गई है, जिससे वह अपना असीम आकाश पा सके। नवयुग की हवाएं उसे आंदोलित करें, नवचेतना की अग्नि उसे अग्रगामी बनने के लिए प्रदीप्त करे, यह हमारा यत्न है। राजनीतिक प्रतिनिधित्व यही आकाश, वायु व अग्नि देने का जतन है।
प्रबुद्ध जन कहते रहे हैं कि जिस दिन आर्थिक प्रणाली व उस पर होने वाले स्वामित्व का स्वरूप बदल जाएगा, उस दिन यह राज, समाज आज सब कुछ बदल जाएगा। हमने समाज के समानांतर राज में ही प्रतिनिधित्व देकर बीते कल व गुजर रहे आज को आने वाले कल में तब्दील करने का यत्न किया है।
संसद से प्रधानमंत्री का महत्वपूर्ण सन्देश आज भारतीय राजनीती में महिलाओं की वास्तविक हैसियत बताने के लिए पर्याप्त है कि “आज तक भारत के लोकतंत्र के इतिहास में कुल मिलाकर साढ़े सात हजार सांसद चुने गए जिसमें से मात्र 650 महिलाएं ही संसद तक पहुंच पाई” तो असल प्रश्न यह उठता है कि क्या कई-कई बार बहुमत की मलाई खा चुकी पूर्व की सरकारें इतनी अपाहिज थी कि नारीशक्ति के बिल को पास नहीं करा सकती थी या करवाने की मंशा नहीं थी। एक चिंता यह भी है कि कहीं विधायिकाओं में सीधे-सीधे महिला सीट आरक्षण करने से महिला कैंडिडेट सिर्फ महिला सीट तक ही सीमित होकर न रह जाए जैसे कि 1990 के प्रारंभिक वर्षों में फिलिपींस, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशो में हुआ और ऐसे में सामान्य सीटों पर सक्षम होने पर भी महिला कैंडिडेट को नहीं उतरा गया। हालांकि बिल में सीटों के रोटेशन का भी जिक्र किया गया है। दूसरी और पुरुष कैंडिडेट्स के महिला चेहरों को उतरना जैसी समस्या, ग्राम प्रधान-पति आदि के रूप में लोकल बॉडीज में भी झेली जा चुकी है। सक्षम दावेदारों के ईमानदार चयन के लिए राजनीतिक दलों को अपने आंतरिक ढांचे में और अधिक लैंगिक तटस्थता लानी होगी।
कोई प्रश्न कर सकता है कि आधी दुनिया को एक-तिहाई ही क्यो? इसमें दो बातें महत्वपूर्ण रूप से ध्यातव्य है। आज भी संसार में कोई भी विकसित देश ऐसा नहीं है, जहां स्त्री को 50% या उससे अधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त है। स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, इजरायल, पोलैंड, कनाडा आदि विकसित देशों में भी महिलाओं के लिए आरक्षण सामान्यत: एक-तिहाई से कम ही रहा है और चीन व संयुक्त राज्य अमेरिका में तो एक चौथाई से भी कम है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि हमें आरक्षण का प्रावधान उसके चरणबद्ध विकास के साथ सुनिश्चित किया जाना चाहिए। द्वितीय महत्त्वपूर्ण बिंदु यह है कि यह एक तिहाई का प्रावधान न्यूनतम का प्रावधान है। अधिकतम का नहीं। भारत आगामी भविष्य में यह देखेगा कि यह एक तिहाई का संबल उसे शीघ्र ही आधे के समानुपातिक प्रतिनिधित्व में रूपांतरित करने में समर्थ कर देगा।
यह विधेयक भी उस समय आया है जब कई राज्यों में चुनावों की रणभेरी बज चुकी है। इन चुनावों के लिए किए गए विभिन्न दलों के टिकट वितरण ने महिलाओं के प्रतिनिधित्व के दावों की पोल खोल दी है। आजादी के बाद सभी दलों ने महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के बडे बडे दावे किए लेकिन जब प्रतिनिधित्व देने की बारी आई तो पीछे हट गए। अब केन्द्र सरकार के मजबूत इरादों वाला यह नारी वंदन बिल देश की आधी आबादी को देश के सर्वोच्च सदनो तक पहुंचाने का रास्ता साफ कर चुका है।  
किसी समय में फ्रांसीसी नारीवादी विचारिका सीमोन द बोउवार ने कहा था, इस समाज में स्त्री जन्म नहीं लेती, वह स्त्री बना दी जाती है। हमारी सीमा रेखाएं उसे अपूर्ण बना देती है. हमारी असुविधा व असुरक्षा उसकी संभावनाओं को प्रतिहत कर देती है। वह भी स्वतंत्र व्यक्ति है, मुखर अभिव्यक्ति चाहती है। वह हर मंच पर बोलने हर मोर्चे पर लड़ने और हर मुद्दे पर सोचने का वही है रखती है, जो किसी भी मानव को जन्मजात रूप में प्राप्त होता है। ऐसे समय में यह नारीवादी स्वर मुखरित होता प्रतीत होता है-
तू बोलेगी मुंह खोलेगी, तब ही तो यह जमाना बदलेगा।
दरिया की कसम, मौजो की कसम, यह ताना बाना बदलेगा।
तू खुद को बदल, तू खुद को बदल, तब ही तो जमाना बदलेगा।
आवाज उठा, कदमों को मिला साथ जरा आगे को बढ़ा, तभी तो जमाना बदलेगा।

संसद को हम हाउस या सदन कहते हैं। एक सम्यक सदन वह है, जो स्त्री व पुरुष पक्ष से संतुलित है, एक दूसरे से समस्वरित है। सही आयाम होगा, जब वैदिक स्वर प्रतिध्वनित होगा।
"संगच्छध्वं संवदध्वं से वो मनांसि जानताम्।"

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