मुख्य सचिव सार्वजनिक निर्माण विभाग की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट
जहाँ एक ओर राजस्थान के मुख्य सचिव सुधांश पंत राजस्थान का प्रशासनिक ढांचा सुधारने का भरसक प्रयास कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर सार्वजनिक निर्माण विभाग में अधिकारियों की कार्यशैली से जनता परेशान हो रही है!
इसी क्रम में मुख्य सचिव सुधांश पंत सोमवार सुबह 9: 20 बजे जैकब रोड स्थित सार्वजनिक निर्माण विभाग के मुख्यालय पहुंचे। पंत वहां बैठने वाले सभी 11 मुख्य अभियंताओं के कक्ष में पहुंचे तो सिर्फ एक मुख्य अभियंता अपने कक्ष में मिला।
सार्वजनिक निर्माण विभाग के शीर्ष अफसरों की समय की पाबंदी को लेकर इस तरह की लापरवाही पर मुख्य सचिव उखड़ गए और उन्होंने विभाग के एसीएस संदीप वर्मा से फोन पर बात की। उन्होंने कहा कि 11 में से केवल एक मुख्य अभियंता ही उपस्थित है। आपके वरिष्ठ अधिकारी ही समय पर कार्यालय नहीं आ रहे हैं तो अधीनस्थ कार्मिकों में क्या संदेश जाएगा। उन्होंने कहा कि क्या ऐसे ही विभाग चल रहा है। निरीक्षण में सामने आया कि पत्रावलियां ई फाइलिंग सिस्टम की जगह ऑफलाइन चलाई जा रही थीं। शौचालय भी गंदगी से अटे पड़े थे। पंत ने कहा कि जो विभाग सरकार का रख-रखाव करता है, उसका ही यह हाल है तो कैसे काम - चलेगा। पत्रावलियों के निस्तारण - का औसत समय भी ज्यादा था।
*सार्वजनिक निर्माण विभाग के प्रथम अपीलीय अधिकारी तथा लोक सूचना अधिकारी जानकारी न देने के लिए निकाल रहे नई-नई गलियां !*
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचना माँगने पर आवेदकों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार है लेकिन मिली जानकारी के अनुसार
सार्वजनिक निर्माण विभाग के प्रथम अपीलीय अधिकारी एवं अधीक्षण अभियंता सार्वजनिक निर्माण विभाग वृत्त - शहर जयपुर तथा अधिशासी अभियंता सार्वजनिक निर्माण विभाग निर्माण खंड जयपुर !
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचना माँगने पर वादीयों को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7(9) का हवाला देकर सूचना देने से इनकार कर रहे हैं !
जबकि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी ना देना दंडनीय अपध हैं। भ्रामक और अपूर्ण सूचना देने वाले अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का एक्ट में प्रावधान हैं।
अपूर्ण और भ्रामक जानकारी देना एक्ट की धारा 20 के तहत दंडनीय अपराध हैं। लेकिन सार्वजनिक निर्माण विभाग के प्रथम अपीलीय अधिकारी तथा लोक सूचना अधिकारी जानकारी न देने के लिए नई-नई गलियां निकाल कर आवेदकों को सूचना प्रदान नहीं कर रहे हैं!
*सार्वजनिक निर्माण विभाग कर रहा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7(9) का दुरूपयोग*!
प्रत्येक प्रजातांत्रिक देश में जनता को यह जानने का हक है कि सरकार उसके लिए क्या, कहां और कैसे काम कर रही है तथा उसके द्वारा टैक्स के रूप में दिए गए धन को कैसे खर्च कर रही है| जनता को सरकार से जुड़े सभी बातों को जानने का अधिकार ही सूचना का अधिकार है। इस दिशा में 2005 में भारतीय संसद द्वारा एक कानून पारित किया था जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है।
भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता ही देश का असली मालिक होता है। इसलिए मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का हक है कि उसने अपनी सेवा के लिए जो सरकार चुनी है, वह क्या, कहां और कैसे काम कर रही है। इसके साथ ही हर नागरिक सरकारी को काम-काज को सुचारू ढ़ंग से चलाने के लिए टैक्स देता है, अतः नागरिकों को यह जानने का हक है कि उनका पैसा कहां खर्च किया जा रहा है| जनता को सरकार से जुड़े सभी बातों को जानने का अधिकार ही सूचना का अधिकार (RTI) है। इस दिशा में 2005 में देश की संसद ने एक कानून पारित किया था जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि किस प्रकार आम जनता सरकार से सूचना मांगेगी और किस प्रकार सरकार उसका जवाब देगी लेकिन
सार्वजनिक निर्माण विभाग के प्रथम अपीलीय अधिकारी एवं अधीक्षण अभियंता सार्वजनिक निर्माण विभाग वृत्त - शहर जयपुर तथा अधिशासी अभियंता सार्वजनिक निर्माण विभाग निर्माण खंड जयपुर !
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचना माँगने पर आवेदकों को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7(9) (disproportionately divert the resources of the public authority) का हवाला देकर सूचना देने से इनकार कर रहे हैं !
*आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 7(9) इस प्रकार है*
"कोई भी जानकारी आम तौर पर उसी रूप में प्रदान की जानी चाहिए जिसमें वह मांगी गई है, जब तक कि यह सार्वजनिक प्राधिकरण के संसाधनों का असंगत रूप से दुरुपयोग नहीं करेगी या संबंधित रिकॉर्ड की सुरक्षा या संरक्षण के लिए हानिकारक नहीं होगी।"
जबकि क़ानून के मुताबिक़ कुछ मामलों को छोड़कर अधिनियम की धारा 7(9) सूचना देने से इनकार करने का आधार प्रदान नहीं करती है।
ख़ासकर जब अधिनियम की धारा 8 (1) प्रदान करती है। आरटीआई आवेदन के जवाब में जानकारी देने से इनकार करने का कोई आधार नहीं है।
सूचना देने से इनकार केवल धारा 8 (1) या धारा 9 के तहत हो सकता है। धारा 11 किसी तीसरे पक्ष को अपनी आपत्तियां देने का अवसर देने के लिए एक प्रक्रिया निर्धारित करती है और धारा 7 (9) को केवल उस जानकारी को बताने के लिए लागू किया जा सकता है। जो अपीलकर्ता द्वारा मांगा गया प्रारूप संभव नहीं है। हालाँकि, धारा 7 (9) का उपयोग करते समय पीआईओ को वैकल्पिक प्रारूप में जानकारी देनी होगी। इसके अलावा प्रश्न धारा 11 या धारा 7(9) का उपयोग करने के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं हैं।
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