सनातन संस्कृति की संरक्षक है संस्कृत : डॉ. गोपाल शर्मा
जयपुर । संस्कृत भाषा न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर है बल्कि यह संपूर्ण मानव जाति के लिए ज्ञान का अथाह सागर भी है। संस्कृत सनातन संस्कृति की आत्मा है। इसकी महिमा और अद्वितीयता को पहचान कर इसे संरक्षित और संवर्धित करना चाहिए। यह बात गुरुवार को जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में हुए शिक्षक सम्मान समारोह में विधायक डॉ. गोपाल शर्मा ने कही। उन्होंने कहा कि संस्कृत न केवल अतीत की धरोहर है बल्कि यह भविष्य की भी कुंजी है। संस्कृत के माध्यम से अपनी जड़ों को समझकर हम एक समृद्ध और ज्ञानमय समाज का निर्माण कर सकते हैं। संस्कृत के अध्ययन से न केवल प्राचीन भारतीय संस्कृति की गहरी समझ प्राप्त होती है बल्कि यह आधुनिक विज्ञान, गणित, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी के विभिन्न पहलुओं को भी स्पष्ट करती है। संस्कृत मस्तिष्क को तर्कसंगत और संगठित ढंग से सोचने की क्षमता प्रदान करती है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने कहा कि शिक्षक के सम्मान की सर्वप्रथम उद्घोषणा गुरु—शिष्य परंपरा करती है, जिसकी वाहक संस्कृत भाषा है। संस्कृत पढ़कर प्राचीनता और आधुनिकता को एक साथ जाना जा सकता है। समारोह संयोजक शास्त्री कोसलेंद्रदास ने बताया कि समारोह में तीन महिलाओं के साथ 10 शिक्षकों का सम्मान हुआ। राजस्थान संस्कृत अकादमी में संपूर्ण अथर्ववेद को ऑडियो और वीडियो में सस्वर रिकॉर्ड करने वाले डॉ. नारायण होसमने, शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों को संस्कृत भाषा के माध्यम संचालित करने के लिए डॉ. राजेंद्र कुमार शर्मा सहित आरएएस की नौकरी छोड़ केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के जयपुर परिसर में व्याकरण शास्त्र पढ़ा रही डॉ. किरण खींची का सम्मान हुआ। सभी शिक्षकों को सम्मान पत्र, शॉल, श्रीफल और राशि प्रदान की गई। मंगलाचरण डॉ. माताप्रसाद शर्मा और धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव डॉ. सुभाष शर्मा ने किया।
समारोह में संस्कृत भाषा के संवर्धन के लिए विधायक डॉ. गोपाल शर्मा ने प्रतिवर्ष 25 लाख रुपये विधायक निधि से देने की घोषणा की। साथ ही तीन श्रेणियों में संस्कृत सम्मान देने की योजना के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत को बढ़ाने की जिम्मेदारी युवाओं की है, जिन्हें संस्कृत को घर-घर पहुंचाने का काम आरंभ कर देना चाहिए।
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