peethadhishwar raghavacharya ji /रेवासा पीठ के पीठाधीश्वर राघवाचार्य जी महाराज का निधन

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peethadhishwar raghavacharya ji  /रेवासा पीठ के  पीठाधीश्वर राघवाचार्य  जी महाराज का निधन

उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी ने व्यक्त किया शोक

सीकर की रेवासा पीठ के पीठाधीश्वर राघवाचार्य जी महाराज का आज सुबह ह्रदयाघात होने के कारण निधन हो गया है !

आज सुबह बाथरूम में गिरने से वे बेहोश हो गए उन्हें तुरंत ही सीकर अस्पताल ले जाया गया,अस्पताल में चिकित्सकों ने निधन की पुष्टि की ,देशभर में उनके लाखों की संख्या में अनुयायी है ,बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि भी पहुंच सकते हैं रैवासा

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स्वामी राघवाचार्या के निधन पर उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी ने शोक व्यक्त करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि रैवासा पीठाधीश्वर पूज्य स्वामी राघवाचार्य जी महाराज के देवलोकगमन का समाचार अत्यंत दुखद और कष्टप्रद है। उनका जीवन त्याग, तपस्या और धर्म के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक था, जो सदैव हम सभी के लिए एक महान प्रेरणास्त्रोत रहेगा। उनका जाना सनातन धर्म और संपूर्ण समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है। 

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प्रभु श्रीराम जी से प्रार्थना है कि इस कठिन समय में उनके अनुयायियों और शिष्यों को संबल व धैर्य प्रदान करें।

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ग़ौरतलब है कि जानकीनाथ मंदिर सीकर से करीब 20 किलोमीटर दूर रैवासा गांव में है। इस मंदिर में 23 सालों से सीतारामधुन का जाप हो रहा है। मंदिर की स्थापना दौसा जिले के एक गांव में ब्राह्मण परिवार में जन्मे अग्रदेवाचार्य जी ने की थी। जयपुर के गलताजी में दीक्षा ग्रहण करने के बाद सीकर आए थे। यहां अग्रदेवाचार्य जी पीठ में केवल दूध और पानी पीकर सीताराम धुन का जाप करते थे। 1984 में वह पीठाधीश्वर बने थे।

1999 में जयपुर के कपड़ा व्यापारी नागरमल अग्रवाल रैवासा पीठ आए थे। उन्होंने कहा कि मंदिर में अखंड सीताराम धुन का जाप होना चाहिए। इस पर आने वाला खर्व वह उठाएंगे। तब से मंदिर में सीताराम धुन का जाप शुरू हुआ और आज तक जारी है। पहले 12 संत अलग-अलग शिफ्ट में जाप करते थे। अब 8 संत 3-3 घंटे की शिफ्ट में सीतारामधुन का जाप करते हैं। कोरोनाकाल में भी यह जाप जारी रहा था।

भक्तमाल ग्रंथ की रचना भी संत नाभादास ने यही की थी। नाभादास संत अग्रदेवाचार्य के शिष्य थे। अग्रदेवाचार्य जी मंदिर के पीछे बने बगीचे में फूल तोड़ते और उन्हें ठाकुर जी को चढ़ाते। एक बार उन्हें फूल तोड़ते हुए घुंघरू की आवाज सुनाई दी। पीछे मुड़कर देखा तो उन्हें जानकी माता ( सीता ) ने साक्षात दर्शन दिए थे। तब से ही मंदिर का नाम जानकीनाथ मंदिर है। साथ ही एक बार संत अग्रदेवचार्य अपने कुछ साथी संतों के साथ भ्रमण करते हुए किसी जंगल में चले गए थे। तब भोजन न मिल पाने के कारण कई संतों को परेशानी हुई। तो अग्रदेवाचार्य जी सीताराम धुन का जाप किया और जंगल में ही स्वादिष्ट भोजन का प्रबंध हो गया।
मंदिर परिसर में वेद विद्यालय और संस्कृत स्कूल भी है। दोनों में मिलाकर वर्तमान में 75 से ज्यादा स्टूडेंट्स है। जो अपनी पढ़ाई के साथ - साथ सीताराम धुन का जाप करते हैं। हालांकि इसके लिए किसी स्टूडेंट को बाध्य नहीं किया जाता है। महंत राघवाचार्य ने बताया कि वेद स्कूल में पांचवीं क्लास पास करने के बाद लगभग 10 साल की उम्र पार करने के बाद वेद विद्या के लिए प्रवेश लिया जाता है। 7 साल का यह कोर्स होता है। इस बीच विद्यार्थी को यहां शिक्षा दी जाती है।

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