जयपुर की नंद घर महिलाएँ बन रही बदलाव की मिसाल
जयपुर। हमारे गाँवों में, जहाँ हौंसले और मेहनत की कहानी हर घर में बसती है, वहाँ की महिलाएँ हमेशा से ही बड़े बदलाव लाने में अहम् रही हैं। वे परिवार संभालती हैं, खेतों में काम करती हैं और संस्कारों की विरासत संजोती हैं। लेकिन, इन सबके चलते अक्सर उनके अपने सपने पीछे रह जाते हैं। हालाँकि, अब हालात बदल रहे हैं।
एक नई पहल 'शक्ति से प्रगति' के माध्यम से महिलाएँ अपनी ताकत पहचान रही हैं, अपने फैसले खुद ले रही हैं और हर वह काम कर रही हैं, जो कभी मुमकिन नहीं लगता था। इससे यह साबित हो रहा है कि जब महिलाएँ आगे बढ़ती हैं, तो पूरा समाज उनके साथ आगे बढ़ता है। हर बदलाव की अपनी अहमियत होती है, जो सशक्तिकरण की बड़ी तस्वीर में एक नया रंग भरती है। चाहे खोया हुआ आत्मविश्वास वापस पाना हो या फिर दोबारा शिक्षा हासिल करना, खुद का कारोबार शुरू करना हो या फिर समाज में बनी रुकावटों को तोड़ना, महिलाएँ सिर्फ अपना ही नहीं, बल्कि औरों का जीवन भी सँवार रही हैं। वे मिसाल बन रही हैं, जो दूसरों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही हैं।
वाटिका गाँव, जयपुर की 52 वर्षीय सुनीता सैन ऐसी ही एक मिसाल हैं। नंद घर दीदी के रूप में उन्होंने सालों तक बच्चों को पढ़ाने में अपना जीवन समर्पित किया, लेकिन उनके दिल में एक अधूरा सपना हमेशा ज़िंदा था। आर्थिक तंगी और कम उम्र में शादी के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन सीखने की उनकी ललक कभी खत्म नहीं हुई। जब भी वे किसी बच्चे को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करतीं, तब उनके मन में अपने अधूरे सपने की कसक उठती।
फिर एक दिन, उन्होंने खुद को बदलने की ठान ली। अपनी बेटी से प्रेरणा लेकर, उन्होंने हिम्मत जुटाई और दोबारा किताबें उठा लीं। रोज़मर्रा की जिम्मेदारियों के बीच पढ़ाई आसान नहीं थी, लेकिन सुनीता ने हार नहीं मानी। अपने संकल्प और मेहनत से उन्होंने 10वीं की परीक्षा पास कर अपने सपने को साकार कर दिखाया। जहाँ सुनीता को दोबारा पढ़ाई शुरू करके नई प्रेरणा मिली, वहीं जयपुर के जलसू ब्लॉक में तेरह महिलाएँ मिलकर अपने सपनों को आकार दे रही थीं। बरसों तक घर सँभालने, रसोई चलाने और परिवार का सहारा बनने के बाद, अब वे कुछ अपना करना चाहती थीं। वे खुद के पैरों पर खड़ा होना चाहती थीं और अपनी पहचान बनाना चाहती थीं।
इसी सोच के साथ उन्होंने मोमबत्ती बनाने की कला सीखी। घर के सारे काम निपटाने के बाद, वे देर रात तक मोम गूँथतीं और सुगंधित मोमबत्तियों को आकार देतीं। धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास बढ़ा, और जो कभी एक छोटे समूह की कोशिश थी, वह अब रोज़गार का साधन बन गई। नंद घर ने उन्हें ऐसा मंच दिया, जहाँ उनकी बनाई मोमबत्तियाँ दिल्ली हाट और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल जैसे बड़े प्लेटफॉर्म तक पहुँचने लगीं।
इसी समूह की एक सदस्य, गुलाब जी, जो खुद नंद घर दीदी हैं, उन्होंने अपनी बहुओं को भी इस पहल से जोड़ा। जो कभी सिर्फ एक हुनर था, वह कमाई का ज़रिया बन गया, और उनका आँगन आत्मनिर्भरता और खुशियों की खुशबू से भर उठा। हौंसले की ये कहानियाँ सिर्फ घरों और स्कूलों तक ही सीमित नहीं हैं। राजस्थान के असालपुर में महिलाएँ खेती-किसानी में ऐसा बदलाव ला रही हैं, जिसकी पहले कल्पना भी मुश्किल थी। सदियों से खेती को पुरुषों का काम माना जाता रहा है।
महिलाएँ खेतों में मेहनत तो करती थीं, लेकिन फैसले लेना और संसाधनों पर अधिकार हमेशा पुरुषों के पास था। फिर एक दिन, गाँव की कुछ महिलाओं ने खुद कमान संभालने की ठानी। उन्होंने ट्रैक्टर चलाना सीखा जोकी आसान नहीं था, लेकिन इन महिलाओं का ध्यान सिर्फ एक लक्ष्य पर था, और वह था अपने परिवार के लिए बेहतर भविष्य बनाना। धीरे-धीरे वे आगे बढ़ने लगीं। उन्होंने ड्राइविंग लाइसेंस लिए और अपने घरों की आर्थिक व्यवस्था में बराबरी की हिस्सेदार बनीं। अब वे सिर्फ ट्रैक्टर नहीं चला रहीं, बल्कि बदलाव की बागडोर भी संभाल रही हैं।
यह बदलाव सिर्फ कुछ महिलाओं की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे समाज में एक नई सोच की दस्तक है। जब महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक अवसर मिलते हैं, तो सिर्फ वे ही नहीं, बल्कि पूरा गाँव, पूरा समाज उनके साथ-साथ आगे बढ़ता है। अनिल अग्रवाल फाउंडेशन की पहल नंद घर ने 7500 से अधिक केंद्रों के साथ एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है और इस बदलाव को तेज़ी से आगे बढ़ाने में नंद घर अहम् भूमिका निभा रहा है। ये सिर्फ कौशल सिखाने या संसाधन देने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि महिलाओं में आत्मविश्वास भी भर रहे हैं, ताकि वे खुद फैसले ले सकें और नेतृत्व कर सकें।
Comment List