केंद्र में हिमाचल के पशु चिकित्सकों का प्रशिक्षण शुरू
बीकानेर। राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर में हिमाचल प्रदेश के पशु चिकित्सकों के लिए अश्व रोग निदान, निगरानी और प्रबंधन पर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केंद्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ. एस.सी. मेहता ने कहा कि हिमाचल और उत्तराखंड में बड़ी संख्या में घोड़े पाए जाते हैं, जो न केवल परिवहन बल्कि आजीविका का भी प्रमुख साधन हैं।
उन्होंने बताया कि देश के कुल घोड़ा वर्गीय पशुओं में से करीब 70 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जिससे इन राज्यों के पशु चिकित्सकों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता महसूस की गई। संस्थान की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि केंद्र ने स्वदेशी घोड़ों की पहली एसएनपी चिप विकसित की, भ्रूण प्रत्यारोपण में सफलता प्राप्त की और देश को घोड़ों की आठवीं नस्ल प्रदान की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. तरुण कुमार गहलोत, पूर्व निदेशक (क्लिनिक्स), राजुवास ने कहा कि पशु चिकित्सा विज्ञान विविधताओं से भरा क्षेत्र है। घोड़े अन्य पशुओं से भिन्न होते हैं—वे खड़े-खड़े सो सकते हैं और उनकी शारीरिक संरचना में कई विशिष्टताएँ होती हैं। उन्होंने अपने व्यावसायिक अनुभव प्रतिभागियों के साथ साझा किए।
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